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Ratangarh Mata Mandir

𐆕रतनगढ़ माता मंदिर





रतनगढ़ माता मंदिर रामपुरा गांव से 5 किमी और दातिया से 55 किलोमीटर दूर, मध्य प्रदेश (भारत) स्थित है। यह पवित्र स्थान घने जंगल में और "सिंध" नदी के किनारे पर है, हर साल हजारों भक्त इस मंदिर में आते हैं ताकि वे माता रतनगर वाली और कुंवर महाराज का आशीर्वाद पा सकें। हर साल भाई दोओज (दीवाली के अगले दिन) के दिन सैकड़ों हजार देवता माता और कुंवर महाराज के दर्शन करने के लिए यहां आए हैं।




माता मण्डला देवी के नाम से प्रसिद्ध मंदिर म.प्र. के अलावा उत्तर प्रदेश के कई जिलों से भी भक्तों ने आस्था एवं विश्वास क ा केन्द्र बनी मॉ रतनगढ़ के दरबार में अपनी हाजिरी लगाई। जिला मुख्यालय से तकरीबन 70 किलो मीटर दूर तहसील सेंवढ़ा के अंतर्गत घने जंगल एवं पर्वतों की तलहटी से ऊॅची चोटी पर स्थित मॉ रतनगढ़ के दरबार में देवी रतनगढ़ माता का मंदिर हैं

𐆘इतिहास

17 वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी के गुरू समर्थ रामदास ने यहां देवी की मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई थी। देवी मंदिर के ठीक पिछवाड़े कुॅवर बाबा का सिद्घ स्थान है। मान्यताआें के मुताबिक श्रृद्घालु एवं देवी भक्त माता के दर्शन करने के वाद कुॅअर बाबा के चबूतरे पर मत्था टेकने जरूर जाते है। यह बुन्देलखण्ड की संस्कृति का एक हिस्सा है। भक्तो की माने तो माता रतनगढ़ के दरबार में खाली झोली लेकर लोग आते है और अपनी मन की मुरादे पूरी होने पर नाचते गाते हुए जाते है। इतिहास में उल्लेखित प्रमाणों की माने तो मुगल शासक औरंजेब की कैद में शिवाजी आगरा में थे तब सबसे पहले गुरू समर्थ रामदास रतनगढ़ आए थे। इससे पहले रतनगढ़ में केवल एक मढिय़ा थी। बुन्देलखण्ड की उत्तरीवृत्त में विन्ध्य पर्वतमाला के छोर पर रतनगढ़ स्थित है। मंदिर के कुछ फासले पर एक चबूतरा है, जिस पर छोटी सी मढिय़ा में स्फटिक खिलौनों जैसा एक घोड़ा रखा हुआ है। देहाती भाषा में इसे ''घुल्ला'' कहते है। देवी का नाम मान्डूला है परन्तु अब रतनगढ़ की माता के नाम से प्रसिद्घ है। यहां कि लोकमान्यताएं अचरज भरी है लेकिन प्रत्यक्ष देखने के वाद तमाम तर्क और अंधविश्वास के प्रति उपेक्षा दोनो का अवसान हो जाता है। शेष अगर कुछ रहता है तो वह है माता का चमत्कार जो यहां साफ दिखाई देता है।
रतनगढ़ में सर्व प्रथम परमारो ने राज्य स्थापित किया था। रतनगढ़ राजधानी हुआ करती थी। कहते है कि 13वी शताब्दी के प्रारम्भ में अलाउद्दीन खिलजी ने इटावा होकर जब बुन्देलखण्ड पर आक्रमण किया उस समय रतनगढ़ के राजा रतनसेन परमार थे। राजा रतनसेन के एक अवयस्क राजकुमार और एक राजकुमारी थी। राजकुमारी का नाम ''माण्डूला'' था। माण्डूला को अत्यन्त सुन्दर होने के कारण पद्मिनी भी कहा जाता है। खिलजी से युद्घ के दौरान राजकुल के लोग जब मारे गए तो राजकुमार एवं राजकुमारी ही जीवित रह गए थे। दुश्मनो के हाथ न लग पाए इसलिए दोनो ने घास-फूस एकत्रित कर आग लगाकर अपने प्राण त्याग दिए थे। जहां राजकुमारी ने प्राण त्यागे उसी जगह छोटी सी मढिय़ा बना दी गई थी और राजकुमार के प्राण त्यागने के स्थान पर एक चबूतरा। यही वह दो प्राचीन स्थान है जिन्हे देवी रतनगढ़ एवं कुॅवर बाबा के नाम से जाना जाता है। आज से शुरू होने वाले चैत्र नवरात्र पर यहां नो दिन भक्तों का मेला लगा रहेगा। मॉ के दरवार में चैत्र नवरात्रि के दिन हजारों की संख्या में श्रृद्धालुओं ने अपनी उपस्थित दर्ज कराई। रतनगढ़ माता के दरवार में नवरात्रि के दिन श्रृद्धालुओं ने अपनी मुरादो को लेकर रतनगढ़ मॉ के दरवार में पूजा अर्चना करने पहुंचे वहॉ पर पहुंच कर मेले का लुफ्त उठाया और दर्शन किये।

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